Friday, November 20, 2015
Wednesday, November 18, 2015
जब लगे कि तू ही सर्वश्रेष्ठ
उद्द्वेलित मन जब दम्भ भरे
भीतर का अहम जब नृत्य करे
जब लगे तुझे तू ही सर्वश्रेष्ठ
शमशान घाट होकर आना ॥
धधकती है चहु ओर लपटें
मौन स्नेही जन खड़े
विचलित ह्रदय है डगमगाता
'वह' स्वछन्द होकर चल दिए
क्या, कनक द्रव्य का अहंकार
है व्यर्थ, धरा सब अलंकार
इत्र -सुगंघ में लिपटे शिथिल पढ़े
प्रियवर ही मुख पर अग्नि धरे
कंपित कर से दृढ होकर के
करते है मुण्डक पर प्रहार
झंझोर उठेगा हिय अचरज में
है कहाँ सत्य का आदि पृष्ठ ?
जब लगे तुझे तू ही सर्वश्रेष्ठ
शमशान घाट होकर आना ॥
जब पंच तत्व का यह शरीर
तजता जग को हो मूक-बहीर
आखिर ! माटी देह मिले माटी में
औ' अग्नि से अनल मिले
चट्ट चट्ट की ध्वनि होती हुंकार
धू धू कर जलता तत्व सार
आखिर ! माटी देह मिले माटी में
औ' अग्नि से अनल मिले
चट्ट चट्ट की ध्वनि होती हुंकार
धू धू कर जलता तत्व सार
नयनो के सम्मुख सकल देह
होती जाती वायु में विलीन
होती जाती वायु में विलीन
अब कहो अनुज, है कौन ज्येष्ठ ?
जब लगे तुझे तू ही सर्वश्रेष्ठ
जब लगे तुझे तू ही सर्वश्रेष्ठ
है धन्य यहां की पावन भूमि
निर्भय हो जिसने कदम धरा
इस मलीन काया के मोही मन से
तन धवल पुण्य ऋणमुक्त हुआ
यदि जीवित स्वयं मै आ न सकूँ
अपनों संग आउंगी अवश्य
कैसा मधुर मिलन अद्भुत होगा
फिर सृस्टि का नया सृजन होगा
यदि जीवित स्वयं मै आ न सकूँ
अपनों संग आउंगी अवश्य
कैसा मधुर मिलन अद्भुत होगा
फिर सृस्टि का नया सृजन होगा
उठ आवभगत करना,आलिंगन भर
तू ही सच्चा मित्र घनिष्ठ
जब लगे तुझे तू ही सर्वश्रेष्ठ
शमशान घाट होकर आना ॥
काश !
काश ! मुश्ताक़ी वाली बात कभी फिर से आये
कैद करुँगी हर लम्हा, वो रात कहर की फिर आये
इधर मशगूल थे हम दुनियादारी में
वहां वो डूब रहे थे खुमारी में
दफ़्तन उनका दस्तक देना
आहिस्ता से कानो में कहना
कहते कहते वो खामोशी....
उफ़! क्यों रोका उन रेशमी जज़्बातों को
बेसुध लबो से फिसलते अल्फाज़ो को
बेसुध लबो से फिसलते अल्फाज़ो को
संजीदगी को थोड़ा बहकने तो देते
जुबा पर दबे राज़ आने तो देते...
Monday, November 2, 2015
भागते बादल
पलक झपकते -रूप बदलते
भागे जाते काले बादल..
ऐसा लगता, अब उलझ गए
कुछ पल उलझे ही संग चले
पर देखो आगे सुलझ गए...
मुस्काता मन, बीते कल पर
घर का आँगन, छत की रातें
धीमे - धीमे भोर की लाली
दरवाजे तक लाती धूप
घर का आँगन, छत की रातें
धीमे - धीमे भोर की लाली
दरवाजे तक लाती धूप
नमन हाथ, रुद्राक्ष की माला
चन्दन टीका माथे वाला
हसी ठिठोली भरी दुपहरी..
अब घर की छत भी नयी नयी
आँगन भी सबके बदल गए
ऐसा लगता अब उलझ गए
चन्दन टीका माथे वाला
हसी ठिठोली भरी दुपहरी..
अब घर की छत भी नयी नयी
आँगन भी सबके बदल गए
ऐसा लगता अब उलझ गए
पर देखो, आगे सुलझ गए...
कहीं सूनी सूनी राते होंगी
कोई चुपके से हँसता होगा
नादानी पर , मनमानी पर
अल्हड़ मस्त जवानी पर
कोई चुपके से हँसता होगा
नादानी पर , मनमानी पर
अल्हड़ मस्त जवानी पर
लो फिर से ठंडी हवा चली
यादों के सपने आँखों से गए..
ऐसा लगता अब उलझ गए
पर देखो, आगे सुलझ गए....
यादों के सपने आँखों से गए..
ऐसा लगता अब उलझ गए
पर देखो, आगे सुलझ गए....
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