Friday, December 2, 2016

अन्तर्द्वन्द










कोई देख ना पाए, अन्तर्द्वन्द चल रहा ख़ामोशी से

ऊपर तारों का महाकुम्भ , नीचे पसरा सन्नाटा है
निंदिया ने सबपे असर किया, मै जाग रहा ख़ामोशी से

बेहद बुलंद अव्वल सपने, फीके फीके बेस्वाद लगे
बदहवास सा भाग रहा, पर पिछड़ रहा ख़ामोशी से

रौशन रुतबे का मकड़जाल, बुनते बुनते ही उलझ रहा
बाहर चिराग ले घूम रहा, भीतर अँधियारा ख़ामोशी से

मरुभूमि की तपन बढ़ रही, दहक रही ज्वाला सी रेत
मै झुलसा, दम तोड़  रहा  औ' मेघा देखे ख़ामोशी से

ढलने को है स्याह रात, आ रहा भोर ख़ामोशी से
रोज़ मात खा तंग आ गया, पर एक 'आस' ख़ामोशी से

कोई देख ना पाए, अंतर्द्वंद  चल रहा ख़ामोशी से...

-नलिनी (21Oct 2016, 4:40am)