Tuesday, October 27, 2015

गौरव













परीकथा सा यह जीवन
सच है  तुमसे पाया मैंने
इठलाती हूँ मैं मन ही मन
जब पहले पहल छुआ तुमने...

मैं बीच भंवर में गुमसुम सी
कुछ भनक न थी अब आगे क्या
तुम दूर देश से यूँ आये
ना शोर किया  ना जोर किया
कब हाथ बढाकर हौले से
सच है, तुमने ही तो पार किया....

दिखावे की दुनियादारी में
रिश्तो के कठिन पड़ावो में
तुम कभी सादगी की चादर
और कभी चांदनी की रिमझिम
मुस्काते  जब सजल नयन
सच है,मृदु जीवन तुमसे ही पाया मैंने....

मैं हूँ पतंग सी अम्बर में
कुछ लहराती बलखाती हूँ
ये हवा के रुख का काम नहीं
है जो ये डोर तुम्हारे हाथो में

माथे का कुंकुम तुमसे ही
सुख दुःख का संगम तुमसे ही
मैं कहु ना कहु पर सच है ये
नलिनी का गौरव तुमसे ही...

4 comments:

Unknown said...

The best ever love confession nalinee....Its perfect...

Nalinee Pathak said...

What a beautiful comment. thanks mam

Footprints said...

आख़िरी पंक्ति पे दिल क़ुर्बान! But atleast this post deserves a real photograph.

Nalinee Pathak said...

thank you, Done!