Monday, December 11, 2017

हमनवा















वो हमनवा,  हक़ीक़त औ' हसरत की शाम 
दीदार-ए-महबूब औ' वो बरसती हुई शाम 

वो सफर, सराबोर-राहें औ' सरदी की शाम 
कैद-ए-इश्क़ में गिरफ्त, वो आज़ादी की शाम 

वो रफ़्तार, राज़दार औ' रहबरी  की शाम  
नीम-ए-वक़्त  औ' वो  फिसलती हुई शाम 

वो पडाव,  पहलू   औ'   पसोपेशी की शाम 
गुज़ारिश-ए-गोशा औ' वो महकती  हुई शाम 

वो महफ़िल,  मैकदा  औ'  मदहोशी की शाम 
खुमार-ए-हालत और  वो थिरकती हुई शाम

-नलिनी 
11 Dec 2017, Amsterdam

6 comments:

  1. Zara agli panktiyon me ye to batayein ki hua kya us shaam? ;)

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  2. So beautiful
    वो रफ़्तार, राज़दार औ' रहबरी की शाम
    नीम-ए-वक़्त औ' वो फिसलती हुई शाम

    Loved these lines..

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  3. Wah... Nalinee,
    Har ek najma ko kitni khubsurati se utara hai tumane.
    Each line makes one to relish the moment.

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  4. What to say Nalinee...

    Every poem of yours is a treat for mind and soul....keep posting....

    For you

    Suna hai bichhadi hui yaadein bhi sargoshi karti hai teri bazm mein.
    Kya pata koi khoyi si shaam mujhse bhi mil jaye teri bazm mein.....

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  5. Footprints: दिल के लुटने का सबब पूछो ना सबके सामने ;)

    Rajat: Thank you for your encouraging words, special thank for critic comments.
    I will wait for your text.. Keep writing!

    Sheetal:आप उन चंद लोगो में से हैं जिनको अलफ़ाज़ समझाने नहीं पड़ते,खुद-ब-खुद महसूस कर लेती हैं, बहुत-बहुत
    शुक्रिया!

    Pratibha: तू जब भी कुछ लिखती है, कागज़ में तेरी तस्वीर दिखती है
    लब तो मुस्कुराते है, मगर आँखों में एक नमी सी दिखती है ! Big hug to you mam :)

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  6. दी आप ने शब्दों को इतनी खूबसूरती से पेश किया कि उनकी खुबसूरती और ब‌‌ढ़ गई।

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