Monday, November 2, 2015

भागते बादल




पलक झपकते -रूप बदलते
भागे जाते काले बादल..
ऐसा लगता, अब उलझ गए
कुछ पल उलझे ही संग चले
पर  देखो आगे  सुलझ गए...

मुस्काता मन, बीते कल पर
घर का आँगन,  छत की रातें
धीमे - धीमे भोर की लाली
दरवाजे तक लाती धूप

नमन हाथ, रुद्राक्ष की माला
चन्दन टीका माथे वाला
हसी ठिठोली भरी दुपहरी..
अब घर की छत भी नयी नयी
आँगन भी  सबके  बदल गए
ऐसा लगता अब उलझ गए 
पर देखो,  आगे सुलझ गए...

कहीं  सूनी सूनी राते होंगी
कोई चुपके से हँसता होगा
नादानी पर , मनमानी पर
अल्हड़ मस्त जवानी पर
लो फिर से ठंडी हवा चली
यादों के सपने आँखों से गए..
ऐसा लगता अब उलझ गए
पर देखो,  आगे सुलझ गए....

2 comments:

  1. Pati patni ke atoot bandhan ko prakriti ke abhinn ang jaise 'baadlon' ke milne bichadne se tulna karna yahi darshata hai ki nalini mein asaadharan nahi per ek atulniya vidha avashya hai....!!

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  2. deep analysis ke liye bahut bahut dhanywaad :):)


    aur haan.... special efforts ke liye bhi ;)

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