Wednesday, October 28, 2015

मेहमानवाज़ी


सोचा आज उनकी मेहमानवाज़ी की जाए
वो आयें ना  आयें तैयारी तो की जाए!

करीने से रख दिया है  शरबत का ज़ार
मेज पर मोमबत्ती बैठी, पिघलने को तैयार

सजाया है बीचोबीच, इक गुलदस्ता दिलकश
भीनी-भीनी खुशबू में कुछ तो होगी कशिश

सुना है शौक़ीन हैं वो, क्यों ना साज़ लगा दिया जाये
वो आयें ना आयें  तैयारी तो की जाये!

बेतरतीब किताबो को, कतार में लगाया है
थके कदमो की खातिर, कालीन बिछाया है

इक लम्बी दास्ताने-किताब लिए बैठे है हम भी
हुज़ूर ! कभी तो  इधर भी मेहरबानी हो जाये

सुना है कातिब हैं वो, क्यों ना एक कलम रख दी जाये
वो आयें ना आयें  तैयारी तो की जाये!

आईने में खुद को इत्मीनान से उतारा है
सांवली सूरत को बड़े नाज़ो से सवारा है

काजल-लाली-कंगन-बाली, सब बेकार ना जाए
या इलाही ! बस एक नज़र तो गौर फरमाये

सुना है जादूगर  हैं वो,  क्यों न एक ताबीज़ पहन ली जाये
वो आएं ना  आयें तैयारी  तो की जाए!

4 comments:

  1. Itminaan se tashrif rakhke jo jodega khud ko iss ghazal se,
    basharte usse ek baar to ishq ho hi jayega isse likhne wali kalam se..!!

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  2. Ati uttam ati uttam 😜
    उनको तो आना ही है, क्यों मेज़बान इतना बेक़ाबू है!
    आख़िर वो कातिब ही तो उस जादूगर का जादू है। ;) ;)

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  3. फ़िदा हो गए हम आपकी हाज़िर जवाबी पे ...

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