भरी महफ़िल में तमाशा बनाकर
बुत सी खड़ी तमाशबीन बनी रही
मै पड़ा कराहता रहा
वो खड़ी -खड़ी दूर से मुस्कुराती रही
कैसी बेदर्द थी वो ....
बुत सी खड़ी तमाशबीन बनी रही
मै पड़ा कराहता रहा
वो खड़ी -खड़ी दूर से मुस्कुराती रही
कैसी बेदर्द थी वो ....
किस हक़ से उसने लूटा मुझे
मेरा कुसूर तो ज़रा बताती
सामने खड़ा था मै उसके
वो मुड़ - मुड़ कर किसी को तलाशती रही
मेरा कुसूर तो ज़रा बताती
सामने खड़ा था मै उसके
वो मुड़ - मुड़ कर किसी को तलाशती रही
कैसी बेदर्द थी वो....
बड़ी मग़रूर थी वो
पर, माँ की आँखों का नूर थी वो
सारे मिलकर दीये जलाते रहे
वो फूक -फूक कर सबको बुझाती रही
कैसी बेदर्द थी वो
पर, माँ की आँखों का नूर थी वो
सारे मिलकर दीये जलाते रहे
वो फूक -फूक कर सबको बुझाती रही
कैसी बेदर्द थी वो
मै जोड़ता रहा , वो तोड़ती रही
No comments:
Post a Comment